अभी तो सिर्फ कागज़ पर लिखे अलफ़ाज़ हैं
तू गुनगुना दे गर तो मुकम्मल ये ग़ज़ल हो जाये
यूँ तो मंज़िल की तमन्ना में ही निकले थे घर से
गर तू हमसफ़र बने तो रास्ता ही मंज़िल हो जाये
बिखरना भी कई दफा कितना हसीन होता है
मैं लहर लहर बिखर जाऊं गर तू समंदर हो जाये
तेरे चश्म-ए-आईने में देखा है अक्सर अक्स अपना
दिल में भी गर उतर जाऊं तो मुकामे-ज़िन्दगी हासिल हो जाये
इक दूजे से दूर ज़िंदा रहने की फकत रस्म ही निभा रहे हैं
रूह रूह में समा जाये तो जिस्म को मायने मिल जाये
आपकी गुज़ारिश पर एक के बाद एक शेर लिख डाले
गर आपकी नज़रे-इनायत हो तो इनका नाम ग़ज़ल हो जाये
~ अनामिक
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