Saturday, February 26, 2022

इतिहास २

आज परम पूज्य वीर सावरकर जी की पुण्यतिथि है ... कुछ तथ्य जो उनके व्यक्तित्व को बखान करते हैं ..

-बहुत कम लोगो को इसकी जानकारी है कि उन्होंने भी अपने स्व. मोतीलाल नेहरु , प. जवाहर लाल नेहरु जी और महात्मा गाँधी की तरह बार एट लॉ की परीक्षा पास की थी | पर इंग्लैंड मे उन्हे बैरिस्टर की डिग्री सिर्फ इसीलिए नही मिली क्योकि उन्होने अंग्रेज़ो की वफ़ादारी की शपथ लेने से इनकार कर दिया था |

- नवम्बर 1905 मे उन्होने भारत मे पहली बार विदेशी वस्त्रो की होली जलाई , वो भी अपने महात्मा गाँधी जी से लगभग 17 साल पहले |

- जब कॉंग्रेस के अधिवेशन मे "लॉंग लिव द किंग" गाया जाता था तब वीर सावरकर कोल्हू मे बैल की जगह जुतकर 30 सेर तेल रोज निकलते थे | नारियल के रेशे से रस्सी बुनते थे |

-1908 मे उन्होने "भारत का स्वाधीनता संग्राम 1857" लिखा जिसे अँग्रेज़ों ने छपने से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया था | इसे भारत में स्वयं भगत सिंह के छपवा कर बंटवाया था | इस ग्रंथ को क्रांतिकारियो की गीता कहा जाता था | विडंबना देखिये आज भगत सिंह के कथित समर्थक ही वीर सावरकर पर भद्दे कमेंट करते हैं |

-अँग्रेज़ों के शासन काल मे वो अकेले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हे 2 जीवन काले पानी की सज़ा दी गयी थी | इस पर जब उनसे पूछा गया कि वो इस सजा को किस रूप में देखते हैं तो उन्होंने कहा था कि " 2 जन्म की छोडिये मुझे तो इस पर हंसी आती है कि अंग्रेज सरकार ये समझती है कि ये लोग भारत पर शासन करते रहेंगे | "

- एक महान क्रांतिकारी होने के साथ साथ वो एक महान कवि भी थे | उन्होंने अंडमान की जेल मे उन्होने कील से दीवारो पर खुरच कर लगभग 10000 पंक्तियो का महाकाव्य लिखा था |

- परम पूज्य डॉ. हेडगेवार जी, बाबा साहेब आंबेडकर और गाँधी जी की तरह ही वीर सावरकर समाज सुधारक भी थे | ब्राह्मण होते हुए भी वो छुआछूत के सबसे बड़े विरोधी थे | 1931 मे उन्होने "पतित पावन मंदिर" की स्थापना की थी जिसमे सभी हिंदू बिना किसी भेदभाव के पूजा कर सकते थे | इस मंदिर में दलित पुजारियों की नियुक्ति की गयी थी | जिस ज़माने में किसी दलित की छाँव मात्र से कथित सवर्ण अपवित्र हो जाते थे उस समय मंदिरों में दलित पुजारियों की नियुक्ति बहुत बड़ी बात थी | 

-1937 मे उन्हे हिंदू महासभा का अध्यक्ष चुना गया था | उसके बाद उन्होंने इस संगठन को एक नयी दिशा दी |

यहाँ अगर मैं वीर सावरकर पर लिखना शुरू करूँ तो शायद मेरी डायरी के सारे पन्ने भर जायेंगे, मेरी कलम की स्याही खत्म हो जाएगी और फिर भी मैं उनके व्यक्तित्व का 1 छटांक भी वर्णन न कर पाउँगा | दुःख होता है कभी कभी जब ऐसे महान क्रांतिकारियों पर कुछ तथाकथित फेसबुकिये क्रांतिकारी लांक्षन लगाते हैं | सूर्य पर थूकने वाले शायद ये भूल जाते हैं कि उनका थूक वापस उन्ही के चेहरे पर गिरता है | आप चाहे सावरकर को कितना ही कलंकित करने की कोशिश क्यों न करो हर बार आप मुंह की ही खाओगे |

शत शत नमन उस वीर को जिसने अपने जीवन के बहुमूल्य 29 वर्ष जेल और नज़रबंदी मे बिताए और बदले में आजाद भारत में जेल गए | जिसने भारत की आज़ादी के लिए अपने नाख़ून खिचवाये और बदले में आज़ाद भारत में ताने सुने | माँ भारती अपने इस वीर पुत्र पर गर्व करती है | पुन:श्च नमन .. _/\_

~अनुज अग्रवाल




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