Thursday, October 9, 2014

तेरी यादोंमें मैंने क्या क्या


हिंदी दिन के अवसर पर मेरी एक हिंदी कविता पेश करता हूॅ |

◆ बहोत दिल रोया ◆

तेरी यादोंमें मैंने क्या क्या है खोया
आसुओंमें रात गुजरी बहोत दिल रोया |

चलते चलते नदियाका पानी कुछ कहेता हैं
साथ तेरी तुट गयी चेहरा मन में रहेता हैं
ना कभी चैनसें निंदमें हैं सोया
आसुओंमें रात गुजरी बहोत दिल रोया ||

कैसें जिऊं तेरेबिन प्यार मेरा कहेता हैं
तेरे पास आऊं कैसे यार नैन बहेता हैं
बस जिंदगीमें मैंने तुझको तो हैं पाया
आसुओंमें रात गुजरी बहोत दिल रोया ||

- मुक्तविहारी
(लिखान तारिख. 05.09.2003).
केशव कुकडे ऊर्फ मुक्तविहारी

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