Saturday, April 25, 2020

परशुराम कथा

वंशज हूँ परशुराम का,शास्त्र मेरी गाथा है🚩🚩🚩
हिन्दू धर्म में जन्मा हूँ, भारत मेरी माता है🚩🚩🚩

भगवान विष्णु जी के छठवें अवतार भगवान श्री #परशुराम जी की जयंती पर समस्त देश एवं प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

पौराणिक मान्यता अनुसार अक्षय तृतीया के दिन किए गए शुभ एवं पुण्य कार्य अनंत और अक्षय फल देने वाले होते हैं। इसी मान्यता ने संपूर्ण जनमानस को आज के दिन अधिकाधिक स्थिर वैभव, शांति और पुण्य अर्जित करने हेतु प्रेरित किया है। आज के दिन स्वर्ण आभूषण आदि का क्रय शुभ एवं स्थाई माना जाता है। आज का दिन बिना किसी लग्न और मुहूर्त के विचार के समस्त शुभ और मांगलिक कार्य करने हेतु सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है।  इसीलिए बिना किसी शुभाशुभ के विचार के विवाह आदि मांगलिक कार्य बहुतायत से संपन्न किए जाते हैं। 

आज का दिन भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रुप में भी मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार हैं। उन्हें भगवान विष्णु का "आवेशावतार" भी माना जाता है। परसुराम का उल्लेख कई पुराणों, महाभारत और रामायण आदि ग्रंथों में प्रचुरता और प्रमुखता से पाया जाता है।

परशुराम एकमात्र अवतार हैं जो सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों युगों में महत्वपूर्ण रूप से उल्लिखित है। परशुराम का अवतरण तत्कालीन समाज में व्याप्त अराजकता, अत्याचार,अनाचार, दुराचार को समाप्त करने के लिए हुआ माना जाता है जिसे उन्होंने भगवान शंकर द्वारा, इसी उद्देश्य के लिए प्रदत्त "परशु"नामक अस्त्र से समाप्त किया। ऐसी मान्यता है कि उन्होंने 21 बार अनाचारी  शासकों का संहार किया।

त्रेता युग में सीता स्वयंवर हेतु खंडित हुए "पिनाक" शिव धनुष के कारण भगवान परशुराम का मिलन राम से हुआ। अपने क्रोध अतिरेक के कारण वे राम को नहीं पहचान पाए,परंतु श्रीराम द्वारा अत्यंत विनम्र भाव से उन्हें वस्तु स्थित समझाई गई और उन्हें स्मरण कराया गया कि वह ब्राह्मण हैं "नव गुण परम पुनीत तुम्हारे" कहकर श्रीराम द्वारा स्मरण कराए जाने पर उन्होंने राम को पहचाना, और अपनी संशय समाप्ति भगवान विष्णु द्वारा प्रदत्त "सारंग" नामक धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने का अनुरोध किया और संशय मिट जाने के पश्चात वह जनक की सभा से शालीनता पूर्वक,युग-संरक्षण का दायित्व प्रतीकात्मक रूप से, "सारंग" नामक दैवी धनुष के साथ श्रीराम को सौपकर, तपश्चर्या हेतु वन प्रस्थान कर गए।

यह घटना शास्त्रों में इस रूप में वर्णित है कि धर्म रक्षा का दायित्व जो अब तक परशुराम को दिया गया था उसे अब आगे त्रेता युग में श्री राम संभालेंगे।इस घटना के बाद ही "आवेशावतार" परशुराम "तेजो हरण" के उपरांत कल्पांत पर्यंत भूलोक पर तपस्यारत रहने हेतु वन गमन कर गए। ऐसी मान्यता है की परशुराम पृथ्वी के सात चिरंजीवियों में एक हैं जिनकी मृत्यु अब तक नहीं हुई है और वह कलयुग के अंत तक इस पृथ्वी पर अपने दायित्व का निर्वहन करते रहेंगे।

भगवान राम ने परशुराम जी से जिन नव गुणों की चर्चा की थी वह मनुष्यता के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।यह सभी नव गुण ब्राह्मणों में होना अनिवार्य बताया गया है।इन्हें ही "नव-निधि" के नाम से भी जाना जाता है। यह निधियां आत्मिक, बौद्धिक और सांसारिक हैं। आत्मिक निधि के अंतर्गत 1-विवेक 2-पवित्रता 3-शांति को गिना जाता है बौद्धिक निधि के अंतर्गत 4-साहस 5- स्थिरता और 6-कर्तव्यनिष्ठा तथा सांसारिक निधि के अंतर्गत 7-उत्तम स्वास्थ्य 8-समृद्धि और 9-परस्पर सहयोग को माना जाता है। इन्हीं का स्मरण भगवान राम ने "नव गुण परम पुनीत तुम्हारे" कहकर कराया था। ब्राह्मणों द्वारा धारण किए जाने वाले जनेऊ के तीन सूत्र इन्ही आत्मिक,बौद्धिक और सांसारिक निधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक सूत्र में तीन तीन सूत्र और होते हैं जो पुनः ऊपर बताई गई निधियों को इंगित करती हैं।इस प्रकार प्रत्येक जनेऊ में 9 धागे होते हैं जो उसे निरंतर इन नव निधियों की प्राप्ति का अभ्यास करने हेतु प्रेरित करते हैं।

पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान विष्णु ने त्रेता युग में अपना "सुदर्शन चक्र" भगवान परशुराम को सौंप दिया था। जो द्वापर युग में भगवान परशुराम ने श्री कृष्ण को ऋषि संदीपनी के आश्रम में प्रदान कर त्रेता युग में अनीति, अधर्म, अन्याय आदि की समाप्ति में उनकी भूमिका को रेखांकित कर दिया था।

अक्षय तृतीया के इस पुनीत अवसर को ब्राह्मण समाज अपने पुनर्जागरण, पुनर्संगठन और पुनरुत्थान के अवसर के रूप में अपनी पुरातन- प्रतिष्ठा एवं सामाजिक श्रेष्ठता की पुनर्प्राप्ति की आकांक्षा से मनाता है।भगवान परशुराम से ज्ञान और शक्ति दोनों दृष्टियों से अपने को सामर्थ्यवान बनाने का अभिलाषा करता है। परंतु यह अभिलाषा चिरकाल से अपूर्ण ही है। इसकी पूर्ति के लिए आवश्यक है कि ब्राह्मण समाज अपने में आई विकृतियों,अहंकार, लोभ, दंभ, नशा, आहार-विचार भ्रष्टता, अज्ञानता आदि को दूर करने हेतु त्याग और तपश्चर्या पूर्ण जीवन को अपनाए।ऊपर लिखित नौ निधि या सद्गुणों का निरंतर अभ्यास करे। समाज के सब भांति उत्थान हेतु अपने को समर्पित करें,तभी सामूहिक रूप से ब्राह्मण समाज अपने पूर्व गौरव को प्राप्त करने में समर्थ हो पाएगा। 

                   🚩🙏🏻जय श्री महाकाल🙏🏻🚩

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