Tuesday, January 9, 2018

अभी तो सिर्फ कागज़ पर लिखे अलफ़ाज़ हैं


अभी तो सिर्फ कागज़ पर लिखे अलफ़ाज़ हैं 
तू गुनगुना दे गर तो मुकम्मल ये ग़ज़ल हो जाये

यूँ तो मंज़िल की तमन्ना में ही निकले थे घर से 
गर तू हमसफ़र बने तो रास्ता ही मंज़िल हो जाये

बिखरना भी कई दफा कितना हसीन होता है
मैं लहर लहर बिखर जाऊं गर तू समंदर हो जाये

तेरे चश्म-ए-आईने में देखा है अक्सर अक्स अपना
दिल में भी गर उतर जाऊं तो मुकामे-ज़िन्दगी हासिल हो जाये

इक दूजे से दूर ज़िंदा रहने की फकत रस्म ही निभा रहे हैं
रूह रूह में समा जाये तो जिस्म को मायने मिल जाये

आपकी गुज़ारिश पर एक के बाद एक शेर लिख डाले
गर आपकी नज़रे-इनायत हो तो इनका नाम ग़ज़ल हो जाये
~ अनामिक

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